माइक्रो टीचिंग क्या हैं इसका अर्थ,अवधारणा,इतिहास,परिभाषाएँ व आवश्यकता | Meaning of micro teaching in hindi

 

 माइक्रो टीचिंग क्या हैं ? What is micro teaching in hindi ?

शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें अनेक शिक्षण कौशलों का उपयोग होताहै। सूक्ष्म शिक्षण की यह अवधारणा है कि शिक्षण की इस जटिल प्रक्रिया को सरलतम प्रक्रियाओं में विभक्त किया जा सकता है और इन सरलतम प्रक्रियाओं की सहायता से एक-एक करके वांछित कौशल का विकास होता है। इस प्रकार एक बार में एक-एक करके कौशलों को अन्त में एक साथ जोड़ा जाता है और इस प्रकार पूर्व निर्धारित शिक्षण उद्देश्य की प्राप्ति होती है। micro teaching in hindi

माइक्रो टीचिंग का अर्थ meaning of micro teaching in hindi

सूक्ष्म शिक्षण शिक्षण की नहीं, प्रशिक्षण की एक नवीन तकनीकी है शोध के निष्कर्षों के आधार पर यह स्पष्ट हो चुका है कि अल्प समय में ही अधिक लाभान्वित हुआ जा सकता है। अतः सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण तकनीकी है, जिसमें अध्यापक के छोटे से छोटे व्यवहार में दक्षता विकसित की जाती है।

सूक्ष्म शिक्षण दो शब्दों से मिलकर बना है सूक्ष्म + शिक्षण (sookshm+shikshan)

शिक्षण में माइक्रो टीचिंग का प्रयोग निम्नलिखित संदर्भ में किया गया है micro teaching in hindi

1.समय  सामान्यत कक्षा शिक्षण में एक कालांश की समय अवधि 35 से 45 मिनट तक होती है परंतु माइक्रो टीचिंग में बात की समयावधि को कम करके 5 से 10 मिनट कर दिया जाता है।
 

2.कक्षा का आकार –  माइक्रो टीचिंग में कक्षा के आकार को कम कर दिया जाता है तथा 5 से 10 छात्र की ही कक्षा होती है। सूक्ष्म व्यवहार और अभ्यास कक्षा शिक्षण के दौरान अध्यापक कई प्रकार के व्यवहार करता है जैसे- श्यामपट्ट कार्य, दृश्य श्रव्य सहायक सामग्री का प्रदर्शन, प्रश्न पूछना, पाठ्यवस्तु की व्याख्या करना, पुनर्बलन आदि व्यवहारों में कुछ आवश्यक होते हैं तो कुछ अनावश्यक । sookshm-shikshan में इन्हीं व्यवहारों के प्रशिक्षण हेतु अध्यापक को प्रशिक्षित किया जाता हैं।

माइक्रो टीचिंग क्या हैं इसका अर्थ,अवधारणा,इतिहास,परिभाषाएँ व आवश्यकता | Meaning of micro teaching in hindi

3.सूक्ष्म व्यवहारों का अभ्यास व विषय वस्तु – माइक्रो टीचिंग में पाठ्यवस्तु पर अधिक बल नहीं दिया जाता है अतः छात्राध्यापक प्रशिक्षणार्थियों के व्यवहार पर अधिक बल दिया जाता है तथा इस व्यवहार के अभ्यास हेतु 5 से 10 मिनट के निर्धारित समय में बहुत कम विषय वस्तु या पाठ्यवस्तु को प्रस्तुत किया जाता है। micro teaching in hindi

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शिक्षक को शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए microteaching का उपयोग किया जाता है…

माइक्रो टीचिंग की अवधारणा (Concept of Micro Teaching)

अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं (Teacher’s Training Institutes) का प्रमुख उद्देश्य है, अच्छे एवं शिक्षण-कौशलों (Teaching-Skills) से युक्त शिक्षक तैयार करना। लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी हम इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाए, कारण है शिक्षकों का अपने ऊत्तरदायित्व से मुँह मोड़ लेना। गुणवता समाप्त होती जा रहीं है।

अध्यापक शिक्षण संस्थान अच्छे शिक्षक तैयार करने में अक्षम होते जा रहे हैं, कारण है शिक्षणाभ्यास के दौरान छात्र अध्यापकों द्वारा की जा रही गलतियों का उनको आभास/भान (Consciousness) नहीं कराना एवं ऐसे छात्रों को भी प्रवेश मिल जाता है जिनका अध्यापन कार्य के प्रति सकारात्मक लगाव नहीं होता है। हमारे शिक्षाविदों ने इन दुविधाओं से अध्यापक शिक्षा संस्थाओं को दूर करने के प्रयास किए हैं।

शिक्षा तकनीकी ने इस कार्य में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। शिक्षण क्रियाओं एवं तकनीकियों में सुधार तभी सम्भव है जब ये संस्थान इस ओर ध्यान दें। कुछ शिक्षा-शास्त्रियों की यह अवधारणा है कि शिक्षक जन्मजात होते हैं, तैयार नहीं किए जाते हैं; लेकिन कुछ शिक्षकों में शिक्षक के गुण जन्मजात होते हैं और कुछ में शिक्षण-कौशलों का विकास शिक्षणाभ्यास के द्वारा विकसित किए जा सकते हैं।

सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण-शिक्षा कार्यक्रम के क्षेत्र में शिक्षण के उन्नयन के लिए एक महत्वपूर्ण नवाचार (Innovation) है; इस शिक्षण-प्रशिक्षण प्रविधि का विकास स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में सन् 1963 में डी. एलेन (D. Allen) एवं उनके सहयोगियों ( एडीशन व राबर्ट बुश) ने किया। इसका प्रयोग शिक्षक प्रशिक्षणार्थियों के व्यवहार परिवर्तन और उनमें विशिष्ट शिक्षण-कौशल के विकास के लिए किया जाता है। वास्तविक कक्षा-शिक्षण की जटिलताओं को कम करते हुए शिक्षण के कार्य को ‘लघु रूप’ में सम्पन्न करना ही इसका महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

sookshm-shikshanएक ऐसी विधा है जिसमें शिक्षण के विभिन्न कौशलों का वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण कर उनको विकसित करने का प्रयास किया जाता है। इसके माध्यम से अध्यापन प्रक्रियाओं को प्रभावी ढंग से अपनाया जा सकता है। जिसके फलस्वरूप छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिमार्जन किया जाता है। अतः शिक्षण-कार्य का विभिन्न कौशलों में विश्लेषण
कर प्रत्येक कौशल में प्रशिक्षणार्थी को प्रशिक्षित करना, माइक्रो टीचिंग’ का मुख्य कार्य है।

माइक्रो टीचिंग का इतिहास (History of Micro Teaching)

‘कीथ एचीसन’ अमेरिका के ‘स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय’ में कार्यरत थे। वे आर. एन. बुश और डी. डब्ल्यू. एलन (Allen) के साथ रहकर शोध-कार्य कर रहे थे : एलन स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षण-व्यवहार एवं शिक्षण-क्रियाओं के विकास के सम्बन्ध में अनुसंधान कार्य कर रहे थे। इन शिक्षण-क्रियाओं एवं शिक्षण-व्यवहार को शिक्षण-कौशलों का नाम दिया।

सूक्ष्म शिक्षण के जनक कौन है?

सर्वप्रथम माइक्रो teaching की खोज जर्मनी के कीथ एचिसन ने की।


भारत में सर्वप्रथम डी.डी.तिवारी ने 1967 में micro teaching शब्द का प्रयोग तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण के क्षेत्र में किया। इन्हें भारत में सूक्ष्म शिक्षण के जनक कहा जाता  है

भारत में 1970 में shukshm shikshan संबंधी विचारधारा प्रारंभ हुई,1977 में शाह, चाउदसमा ने 1971,सिंह मर्क तथा पंगत्र 1970, जोशी 1974 ने चंडीगढ़ में इसके प्रयोग किए।

1974 में ही shukshm shikshan के विषय में वैज्ञानिक जानकारी देने वाली सर्वप्रथम पुस्तक पासी व शाह द्वारा प्रकाशित की गई।

सूक्ष्म शिक्षण का स्वरूप/प्रकृति (Nature of Micro Teaching)

‘माइक्रो टीचिंग’वह विधि है जिसके द्वारा छात्राध्यापक किसी एक शिक्षण- कौशल को कम समय में छोटे समूह को पढ़ाकर अभ्यास कर सकता है। साधारणतया 5-10 मिनट के पाठ में किसी एक सम्प्रत्यय/प्रकरण (छोटा आकार) का अध्यापन 5-10 बच्चों के समूह में किया जाता है। परिवीक्षक निर्धारित मूल्यांकन-प्रपत्र द्वारा पाठ का मूल्यांकन करता है तथा उसे आवश्यक सुझाव देता है।

छात्राध्यापक अध्यापक के सुझावानुसार पाठ में वांछनीय परिवर्तन करता है तथा दूसरे समूह को फिर पाठ पढ़ाता है।
पुनः शिक्षण का भी परिवीक्षक मूल्यांकन करता है; दोनों पाठों के अन्तर व सुधार की चर्चा करता है। शिक्षण प्रशिक्षण में सूक्ष्म-शिक्षण अनुरूपित (Simulated) अथवा वास्तविक परिस्थितियों के समरूप पर्यावरण में ही किया जाता है।

सूक्ष्म-शिक्षण वास्तविक शिक्षण का एक अंग है। इस शिक्षण-प्रक्रिया में वह किसी एक चयनित प्रशिक्षण कौशल का बार- बार प्रयोग करके अभ्यास करता है; जैसे-प्रश्न कौशल, व्याख्यान कौशल, उदाहरण कौशल, प्रस्तावना कौशल, श्यामपट्ट लेखन कौशल आदि। micro teaching in hindi


सूक्ष्मशिक्षण की परिभाषाएँ (Definitions of Micro Teaching)

sukshm-shikshan की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषाएँ दी हैं। इन परिभाषाओं के माध्यम से हम सूक्ष्म-शिक्षण को भलीभाँति समझ सकते हैं।

पैक व टूकर (Pack & Tucker) के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण एक व्यवस्थित प्रणाली है, जिसमें शिक्षण कौशलों की सूक्ष्मता से पहचान की जाती है तथा पृष्ठ पोषण द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।”
 

बुश (Bush) के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण अध्यापन शिक्षा की वह प्रविधि है, जो शिक्षक को स्पष्ट रूप से परिभाषित शिक्षण कौशलों के आधार पर निर्मित लघु पाठ को कुछ छात्रों को पढ़ाने का अवसर प्रदान करती है।” micro teaching in hindi

मैक्नाइट के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण वे सूक्ष्म पदीय शिक्षण परिस्थितियाँ हैं जिनका आयोजन पुराने कौशलों में सुधार एवं नवीन कौशलों के विकास के लिए किया जाता है।”  

एलन (Allen) के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण कक्षा आकार, पाठ की विषय वस्तु, समय तथा शिक्षण की जटिलता को कम करने वाली संक्षिप्तीकृत कला शिक्षण विधि है।” m
icro teaching in hindi

मैक कालम (Mc-Collum) के अनुसार, “सूक्ष्म शिक्षण अध्यापनाभ्यास से पूर्व शिक्षक प्रशिक्षणार्थी को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह विधि सेवा पूर्व या सेवारत शिक्षकों को शिक्षण कौशल के विकास या सुधार करने में काम में ली जाती है।” micro teaching in hindi

यंग के अनुसार -“सूक्ष्म शिक्षण को एक ऐसी प्रविधि बताया है जिसके द्वारा नव शिक्षक तथा अनुभवी शिक्षक दोनों ही अपने शिक्षण कला को परिमार्जित करने के अवसर प्राप्त करते हैं” micro teaching in hindi

सूक्ष्म-शिक्षण (माइक्रो-टीचिंग) की आवश्यकता (Need of Micro Teaching)

शिक्षण का अभिप्राय शिक्षार्थी के लिए सीखने की समुचित परिस्थिति का निर्माण करना है। अध्यापक शिक्षण परिस्थिति का निर्माण के लिए आवश्यकतानुसार विभिन्न अध्यापन- कौशलों का प्रयोग करता है, जैसे- पाठ की प्रस्तावना प्रस्तुत करना, प्रश्न पूछना, अधिगम- सामग्री का प्रदर्शन करना, उदाहरण देना, व्याख्या, श्यामपट्ट लेखन कार्य, पाठ का सारांश प्रस्तुत करना, आदि।

यद्यपि यह सही है कि किसी भी एक पाठ में अध्यापक एक ही कौशल का पूरे समय प्रयोग नहीं करता है, अपितु वह विभिन्न शिक्षण-कौशलों (Teaching-Skills) का समन्वित रूप से प्रयोग है, फिर भी यह आवश्यक है कि वह प्रमुख शिक्षण-कौशलों में दक्षता अर्जित करे ताकि विभिन्न पाठों में आवश्यकतानुसार उनका समन्वय करते हए अपने अध्यापन को उन्नत या प्रभावी बना सके। micro teaching in hindi

स्पष्टतः सूक्ष्म-शिक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से मानी जाती है – 
(i) इस प्रक्रिया में अध्यापक व्यावसायिक परिपक्वता ग्रहण कर सकते हैं।
(ii) सेवा-कालीन शिक्षण में उसके उपयोग से अध्यापकों में आवश्यक परिवर्तन लाया जा सकता है।
(iii) अध्यापक कला में सुधार हेतु सूक्ष्म-शिक्षण बहुत उत्तम रहता है।
(iv) स्वमूल्यांकन में यह विधि अत्यधिक लाभदायक रहती है।
(v) सूक्ष्म-शिक्षण विधि द्वारा सिद्धान्त एवं व्यवहार का एकीकरण सम्भव होने के साथ ही अनुसंधान के रूप में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का उत्तम साधन है। micro teaching in hindi micro teaching in hindi

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