पिछली पोस्ट में हमने micro teaching के बारें में जाना था जिसमे सूक्ष्म शिक्षण क्या हैं ?,
सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ,सूक्ष्म-शिक्षण की अवधारणा,
सूक्ष्म-शिक्षण का इतिहास,सूक्ष्म शिक्षण का स्वरूप/प्रकृति,
सूक्ष्म-शिक्षण की परिभाषाएँ,सूक्ष्म-शिक्षण (माइक्रो-टीचिंग) की आवश्यकता
आदि के बारें में जाना था अभी तक आपने यह नही पढ़ा तो आप यहाँ click करके पढ़ें ……
आज हम micro teaching Cycle के निम्न बिन्दुओ के बारें में अध्ययन करेंगे …..
माइक्रो टीचिंग के सिद्धान्त
एलेन तथा रियान (1968) ने सूक्ष्म-शिक्षण के अधोलिखित पाँच आधारभूत सिद्धान्तों को स्पष्ट किया है
1. वास्तविक अध्ययन का सिद्धान्त – सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है।
2. कक्षा-शिक्षण की हासिल जटिलताओं का सिद्धान्त – इस शिक्षण में साधारण कक्षा-शिक्षण की जटिलताओं को कम कर दिया जाता है। micro teaching Cycle
3. विशिष्ट कौशल के विकास का सिद्धान्त – एक समय में किसी भी एक विशेष कार्य तथा शिक्षण-कौशल के प्रशिक्षण पर ही बल दिया जाता है।
4. नियन्त्रित अभ्यास का सिद्धान्त – अभ्यास-क्रम की प्रक्रिया पर अधिक नियन्त्रण रखा जाता है।
5. प्रतिपुष्टि का सिद्धान्त -परिणाम सम्बन्धी साधारण ज्ञान एवं प्रतिपुष्टि या पृष्ठ- पोषण के प्रभाव की परिधि विकसित होती है।
माइक्रो टीचिंग की प्रमुख मान्यताएँ (Main Assumptions of micro teaching)
(i) सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापकों को एक समय में एक ही शिक्षण-कौशल का विकास किया जाता है।
(ii) पृष्ठ-पोषण या प्रतिपुष्टि (Feedback) के द्वारा अपेक्षित व्यवहारों के प्रारूपों (patterns) का विकास किया जा सकता है।
(iii) सूक्ष्म-शिक्षण में शिक्षक को छोटी कक्षा में एक छोटे से प्रकरण का कम समयावधि में शिक्षण करना होता है। इस प्रकार सामान्य कक्षा में शिक्षण की जटिलताओं को कम किया जाता है। micro teaching Cycle
(iv) सूक्ष्म-शिक्षण एक उपचारात्मक योजना (Clinical Programme) है। प्रतिपुष्टि के द्वारा उन्हें अपनी कमजोरियों तथा दोषों का निरन्तर ज्ञान प्राप्त होता रहता है। micro teaching Cycle
(v) सूक्ष्म-शिक्षण नियन्त्रण की सुविधा प्रदान करता है। शिक्षण-क्रियाओं का वस्तुनिष्ठ रूप से निरीक्षण किया जाता है।
(vi) सूक्ष्म-शिक्षण में व्यक्तिगत क्षमताओं के विकास के पूर्ण अवसर प्रदान किए जाते हैं।
माइक्रो टीचिंग की प्रक्रिया (Operations in micro teaching)
(क) पर्यवेक्षक प्रतिपुष्टि (Supervisor Feedback) : प्रशिक्षण विद्यालयों के शिक्षकों द्वारा सूक्ष्म-पाठ (Micro-lesson) का निरीक्षण करने के पश्चात् प.तिपुष्टि प्रदान करना (Live Observer) | micro teaching Cycle in hindi
(ख) सहपाठी प्रतिपुष्टि (Peer Feedback) : सहपाठी प्रशिक्षणार्थियों द्वारा प्रतिपुष्टि का दिया जाना (Live Observer) ।
(ग) वीडियो टेप रिकार्डर (VTR) : शिक्षण-प्रक्रिया में सम्पूर्ण सूक्ष्म-पाठ को टेप रिकॉर्डर पर टेप कर लिया जाता है और टेप को पुनः सुनकर छात्राध्यापक स्वयं प्रतिपुष्टि प्राप्त करता है। इसे ‘स्व-प्रतिपुष्टि’ (Auto Feedback) कहते हैं।
(घ) टेपरिकॉर्डर (Tape Recorder) : शाब्दिक कौशल यथा व्याख्या करना तथा प्रश्न पूछना आदि की प्रतिपुष्टि के लिए टेपरिकॉर्डर का प्रयोग किया जा सकता है। micro teaching Cycle
सूक्ष्म शिक्षण चक्र (micro teaching Cycle) :
इस सम्प्रत्यय को हम निम्नांकित चक्र के रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं – micro teaching Cycle
माइक्रो टीचिंग के सोपान (Steps Organising Micro- Teaching)
1. प्रस्तावना पद या अभिविन्यास (Orientation) : सबसे पहले प्रशिक्षणार्थियों को सूक्ष्म-शिक्षण के सम्प्रत्यय एवं अर्थ, उसके घटक, विशेषताओं, गुणों तथा दोषों आदि पर सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान दिया जाता है। micro teaching Cycle
2. विशिष्ट शिक्षण-कौशल की परिचर्चा (Discussion of Teaching-Skill) : शिक्षक द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को विशिष्ट शिक्षण-कौशलों के सम्प्रत्यय को स्पष्ट कर उनके मनोवैज्ञानिक आधार तथा घटकों (Components) के विषय में विस्तार से बताया जाता है।
3. विशिष्ट-कौशल का चयन किसी एक विशिष्ट-कौशल से सम्बन्धित पाठ्यवस्तु का सूक्ष्म प्रकरण का चयन किया जाता है।
4. संक्षिप्त पाठ योजना तैयार / नियोजन (Planning) : प्रशिक्षणार्थी अध्यापक पाठ्यवस्तु की इकाई /प्रकरण पर एक संक्षिप्त पाठ योजना तैयार करता है जिसमें की पूर्व- निर्धारित कौशल का प्रयोग कर सके। micro teaching Cycle in hindi
5. शिक्षण-सत्र/शिक्षण (Teaching) : प्रशिक्षणार्थी अपनी योजना के आधार पर से 10 मिनट तक पाठ को पाँच या दस छात्रों की कक्षा में बताए गए संक्षिप्त पाठ को पढ़ाता है। छात्राध्यापक द्वारा दिए गए पाठ को विडियो टेप या साधारण टेप कैसेट पर टेप कर लिया जाता है अथवा शिक्षक-प्रशिक्षक या सहपाठी पाठ का अवलोकन करता है और निरीक्षण-प्रपत्रों पर पाठ के लिए समालोचना संकेत अंकित करता है।
6. आदर्श पाठ प्रस्तुतीकरण (Presentation of Model Lesson) : प्रशिक्षणार्थी बताए हुए सूक्ष्म-शिक्षण के आधार पर (सम्बन्धित विशिष्ट शिक्षण-कौशल) आदर्श पाठ प्रस्तुत करता है। इसे ही ‘मॉडल (Model) प्रस्तुत करना’ कहते हैं।
(i) शिक्षक प्रशिक्षक स्वयं सूक्ष्म-पाठ पढ़कर दिखा सकता है।
(ii) sookshm-shikshan आदर्श पाठ लिखित रूप में भी छात्राध्यापकों को दिया जा सकता है। जिसमें पाठ-योजना के प्रस्तुतीकरण का विवरण भी प्रदान किया जाता है।
(iii) आदर्श पाठ को वीडियो टेप पर रेकार्ड कर टेलीविजन पर प्रदर्शित किया जा सकता है।
(iv) आदर्श पाठ को साधारण टेपरिकॉर्डर पर टेप कर प्रशिक्षणार्थियों को सुनाया जाता है।
7. पाठ निरीक्षण एवं समालोचना (Lesson Observation and Criticism): शिक्षक तथा अन्य प्रशिक्षणार्थियों द्वारा इस आदर्श पाठ का विश्लेषण किया जाता है तथा इसकी विशेषताओं, कमियों तथा त्रुटियों पर विचार-विमर्श करते हैं
8. विश्लेषण व प्रतिपुष्टि/पृष्ठ-पोषण (Feedback) : प्रत्येक छात्राध्यापक को व्यक्तिशः तत्काल प्रतिपुष्टि प्रदान की जानी चाहिए। सूक्ष्म पाठ-पढ़ाने के बाद प्रशिक्षणार्थी, शिक्षक से विस्तार रूप से अपने इस पढ़ाए हुए सूक्ष्म-पाठ की चर्चा करता है। इस समय अन्य प्रशिक्षणार्थी (नियुक्त पर्यवेक्षक) उसकी कमियों तथा अच्छाइयों को स्पष्ट बताकर आलोचना/विश्लेषण करते हैं। प्रशिक्षणार्थी को पुनः पाठ निर्माण (आवश्यकतानुसार) के लिए सुझाव दिए जाते हैं। micro teaching Cycle
9. पाठ का पुनर्गठन या पुनर्योजना (Replan) : प्राप्त प्रतिपुष्टि के आधार पर छात्राध्यापक सुझाव / संकेतों को अपनाते हुए अपने सूक्ष्म पाठ का पुनर्नियोजन (पुनर्गठन) करता है। पुनर्नियोजन के लिए लगभग 12 मिनट का समय दिया जाता है।
10. पुनः शिक्षण (Reteach) : प्रशिक्षणार्थी पुन: तैयार किया हुआ पाठ उसी कक्षा के अन्य विद्यार्थियों को पढ़ाता है, जिसे टेप-रिकार्डर या वीडियो द्वारा टेप कर लिया जाता है। इस समय भी शिक्षण-सत्र (बिन्दु-7) के समान ही पाठ के निरीक्षण आदि का प्रबन्ध किया जाता है।
11. पुनः प्रतिपुष्टि (Refeedback): पुन: शिक्षण के बाद अन्य प्रशिक्षणार्थी तथा शिक्षक उसके शिक्षण को पुन: आलोचना करके सुझाव देते हैं। इस प्रकार छात्राध्यापकों को पुनः प्रतिपुष्टि (पृष्ठ-पोषण) प्रदान की जाती है।
12. शिक्षण/पुन: शिक्षण– इस प्रकार शिक्षण/पुनः शिक्षण का यह चक्र चार से सात बार तक दुहराया जा सकता है। यह स्थिति कौशल-विशेष में शिक्षण-दक्षता प्राप्त कर लेने तक चलती रहती है। उपर्युक्त प्रक्रिया से स्पष्ट है कि छात्राध्यापक इस प्रकार सूक्ष्म-शिक्षण-चक्र का प्रयोग तब तक करता है, जब तक उसे सम्बन्धित शिक्षण-कौशल’ में दक्षता प्राप्त हो गई है। micro teaching Cycle
इस प्रविधि में अनुरूपित शिक्षण’ (Simulated Teaching) का समावेश किया गया है। अर्थात् वास्तविक छात्रों के स्थान पर छात्राध्यापक के अन्य सहपाठी’ (Peer-Pupils) ही छात्र बनकर बैठ जाते हैं। स्मरण रहे कि यदि सूक्ष्म-शिक्षण-प्रविधि का प्रयोग सेवारत शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए किया जा रहा हो, तो ऐसी स्थिति में वे शिक्षक ही पाँच-दस को संख्या में छात्र के रूप में कक्षा में बैठेंगे।
sookshm-shikshan के लिए सामान्यत: निम्नलिखित व्यवस्था का निर्माण किया जाता है
छात्र संख्या: 5 से 10 : निरीक्षक : 1 या 2;
शिक्षण (6 मिनट)- प्रति-पुष्टि (6 मिनट)- पुनः योजना (12 मिनट) – पुनः
शिक्षण (6 मिनट) – पुनः प्रति-पुष्टि (6 मिनट) 36 मिनट।
उपर्युक्त प्रतिरूप (शिक्षण-चक्र) को समझने की दृष्टि से अधोलिखित पदों में स्पष्ट किया जा सकता है-
माइक्रो टीचिंग के लाभ/गुण
Qualities and benefits of micro teaching
3.सूक्ष्म शिक्षण में तुरन्त पृष्ठ पोषण का प्रावधान होता है जिससे छात्राध्यापक को उचित शिक्षण कौशल में दक्षता प्राप्त करने में आसानी रहती है।
4.micro teaching में लघु पाठ्यवस्तु पढ़ाई जाती है जिससे छात्राध्यापक को पढ़ाने में सरलता रहती है। micro teaching Cycle
सूक्ष्म शिक्षण के दोष-हानि
Disadvantages of micro teaching
2.इस विधि से प्रशिक्षित अध्यापकों का सर्वथा अभाव है।
3. 5 से 10 छात्रों की कक्षा का अध्यापन 50 छात्रों की कक्षा से भिन्न होता है।
4.सूक्ष्म शिक्षण एक व्यय साध्य विधि है।
5.यह विधि मात्र सैद्धान्तिक बनकर गई है।
सूक्ष्म-शिक्षण का महत्त्व
(Importance of Micro-Teaching)
(2) यह अध्यापकों को प्रशिक्षित करने की उत्तम तकनीक है।
(3) वास्तविक एवं Peergroup में भी इसका अभ्यास सम्भव है।
(4) इसमें लघु-पाठ (Micro-Lesson) बना होता है जिसमें घटकों को प्राथमिकता दी जाती है। पाठ्यवस्तु को नहीं।
(5) सभी प्रशिक्षणार्थी कौशल विशेष पर ही ध्यान देते हैं।
(6) तुरन्त प्रतिपुष्टि (Feedback) की व्यवस्था होती है।
(7) पाठ को पुनः नियोजित करने की विधा है लेकिन त्रुटियों को सुधार कर पाठ पुन:नियोजित (Replan) करते हैं।
(8) यह व्यक्तिगत शिक्षण की विधि है।
(9) कक्षा का आकार सीमित होता है। अर्थात् 5-10 विद्यार्थी ही होते हैं।
(10) एक बार में एक ही शिक्षण-कौशल (Teaching Skill) को लिया जाता है।
(11) इसमें कालांश का समय 5-10 मिनट होता है।
(12) इससे प्रशिक्षणार्थी में आत्मविश्वास बढ़ता है।
(13) micro teaching व्यावसायिक परिपक्वता पैदा करती है
सूक्ष्म-शिक्षण के उद्देश्य
(Aims of micro teaching)
2. प्रशिक्षणार्थियों को सूक्ष्म-शिक्षण की प्रक्रिया (Procedure) तथा चक्र (Cycle) से अवगत कराना।
3. प्रशिक्षणार्थियों को अभिज्ञान कराना कि प्रभावी शिक्षण सीखने के लिए सूक्ष्म शिक्षण एक आवश्यक प्रक्रिया है।
4. प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण-प्रक्रिया की विश्लेषणात्मक अध्ययन कर विभिन्न शिक्षण-कौशलों से अवगत कराना।
5. प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण के कुछ मूल कौशलों के. घटकों से परिचित करवाना। यथा आदर्शीकरण (Modelling), प्रतिपुष्टि (Feedback), व्यवस्था का निर्धारण (Setting) तथा समन्वय का एकीकरण (Integration) करना।
6. प्रशिक्षणार्थियों के शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु शिक्षण के कुछ मूल कौशलों में दक्षता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।
7. प्रशिक्षणार्थियों को पाठ परिवीक्षण में दक्षता करने में सहायता करना।
8. प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण-प्रक्रिया के अवांछित व्यवहारों से मुक्त करने के लिए सहायता प्रदान करना।
9. प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण के कुछ मूल कौशलों को सन्तुलित (समन्वित) रूप में मिलाकर प्रभावी शिक्षण करने में दक्षता प्रदान करना।
11. प्रशिक्षणार्थियों को micro teaching Approach के गुण एवं दोष के रूप में मूल्यांकन करने में सहायता प्रदान करना।
सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ
(Characteristics of micro teaching):
1. यह शिक्षण-प्रशिक्षण की एक प्रयोगशालीय एवं वैश्लेषिक (Laboratory and Analytical) विधि है।
2. यह व्यक्तिशः (Individual) प्रशिक्षण की प्रविधि है।
3. इसका मुख्य उद्देश्य छात्राध्यापकों में विशिष्ट शिक्षण-कौशलों का विकास करना है। micro teaching वास्तविक शिक्षण है। शिक्षण-कौशल विकास की प्रभावी प्रविधि है।
4. इसमें छात्राध्यापकों को शिक्षण व्यवहार से सम्बन्धित पृष्ठपोषण या प्रतिपुष्टि (Feed-back) तत्काल प्रदान की जाती है।
5. इसमें अध्यापन-कार्य हेतु कक्षा का आकार (5 से 10 छात्र तक) सीमित कर दिया जाता है।
6. कक्षा कालांश.5 से 10 मिनट तक होता है।
7. पाठ्य-वस्तु के सूक्ष्म प्रकरण का बड़े प्रभावशाली ढंग से अध्यापन किया जाता
8. इसमें अनेक शिक्षण-कौशलों के स्थान पर एक शिक्षण-कौशल का ही अभ्यास किया जाता है।
9. micro teaching का उद्देश्य प्रभावी शिक्षण है।
10. शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिमार्जित करना है।
11. पूर्व-सेवारत (Pre-Service) तथा सेवारत (In-Service) शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए यह एक उपयोगी प्रविधि है। तकनीकी कौशल के विकास से दृष्टिकोण में नवीनता आती है।
12. micro teaching के प्रदर्शन पाठ वीडियो-टेप (Video-tape) और फिल्म कुछ विशिष्ट कौशलों की प्राप्ति हेतु दिखाए जाते हैं। छात्राध्यापक इनके माध्यम से स्वतः मूल्यांकन द्वारा अपनी त्रुटियों को जानकर दूर कर सकता है।
13. पर्यवेक्षक द्वारा वस्तुनिष्ठ विधि से मूल्यांकन किया जाता है।
14. सूक्ष्म पाठ की विषय-वस्तु एक ही प्रत्यय (concept) तक सीमित होती है। micro teaching Cycle
16. पाठ देते समय छात्रों में अनुशासनहीनता की समस्या नहीं रहती है।
17. पाठ का समुचित निरीक्षण साथियों द्वारा (Peer Supervisors) अथवा अध्यापक द्वारा किया जाता है
19. सुधारे हुए पुर्ननियोजित पाठ को पुनः पढ़ाने (re-teach) का अवसर मिलता है।
21. यह वास्तविक तथा अभिरूपित (Simulated)/कृत्रिम परिस्थितियाँ दोनों ही प्रकार की परिस्थितियों में सम्भव है।
22. इससे कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को कम किया जाता है।
23. इस शिक्षण से छात्राध्यापकों में आत्मविश्वास जागृत होता है।
24. इसमें निरीक्षक छात्राध्यापक को परामर्शदाता के रूप में परामर्श देता है। micro teaching Cycle
25. इससे व्यावसायिक परिपक्वता (Professional Maturity) का विकास करना होता है। micro teaching Cycle
सूक्ष्म-शिक्षण के उपयोग
(Uses of micro teaching)
1. व्यावसायिक परिपक्वता या निपुणता (Professional Maturity or Efficiency) : इससे व्यावसायिक निपुणता तथा परिपक्वता विकसित होती है। विशिष्ट विषय अथवा अध्यापन प्रणाली का चयन कर इस विधि से कम समय में अभ्यास कर शिक्षक उसके प्रभाव एवं सफलता का मूल्यांकन कर सकते हैं। प्रशिक्षणार्थियों में कक्षा शिक्षण की सफलता हेतु आत्म-विश्वास (Confidence) विकसित होता है। micro teaching Cycle
2. निरन्तर प्रशिक्षण का साधन (Continuous Training) : शिक्षण एक कला है और शिक्षक एक कलाकार है। कलाकार के समरूप शिक्षक निरन्तर अभ्यास और प्रशिक्षण से अपने शिक्षण-व्यवहार में कार्यकुशलता और प्रभावशालीता प्राप्त कर सकता है। शिक्षकों को इस प्रविधि से कम समय में वांछित कौशल व प्रणाली का प्रशिक्षण दिया जा
सकता है।
4. स्व-मूल्यांकन (Self-Evaluation) : micro teaching में शिक्षक अपने पाठ का स्वयं मूल्यांकन व स्वालोचना करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। टेप-रिकॉर्डर की सहायता से अपने पाठ की रिकार्डिंग करके वह स्वयं सुनकर उसमें सुधार कर सकता है।
5. सेवारत प्रशिक्षण हेतु उपयोगी (Useful for Inservice Training) : सेवा- पूर्व प्रशिक्षण में micro teaching का उपयोग छात्राध्यापकों को क्षेत्रीय अभ्यास शिक्षण की पूर्व-तैयारी कराने में सहायक है। उनके सम्मुख कक्षा-शिक्षण की परिस्थितियों के समक्ष अप्रत्यक्ष रूप में परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। सेवारत शिक्षकों के व्यवहार में कई बार दृढ़ता (Rigidity) आ जाती है और कुछ बातें उनकी आदत-सी बन जाती हैं। इस दृढ़ता को न्यून करने में और इन आदतों में सुधार लाने हेतु सूक्ष्म-शिक्षण एक उपयोगी प्रविधि है। सेवारत शिक्षकों के शिक्षण-सामर्थ्य को विकसित करने में सहायक है। micro teaching Cycle in hindi
(अ) सेवा-पूर्व स्थिति में शिक्षक के लिए सूक्ष्म-शिक्षण की उपयोगिता
(1) प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षित करने में सहायक है।
(ii) आत्म-विश्वास के साथ क्षेत्रीय शिक्षण (Block-Teaching) में छात्र कार्य करसकेगा।
(iii) शिक्षार्थी को शिक्षण-कौशल का ज्ञान अच्छी तरह से हो जाता है।
(ब) सेवारत शिक्षक के लिए सूक्ष्म-शिक्षण की उपयोगिता
(i) शिक्षक को नए कौशल को सिखाने में सहायक होती है।
(ii) इससे यांत्रिक रूप में नहीं बल्कि जिस कौशल को वह सुधारना चाहे उसी कौशल का उसे ज्ञान विस्तृत रूप से दिया जा सकता है।
(iii) शिक्षण योजना में सुधार होता है।
6. आदर्श पाठ (Model Lesson) : विभिन्न शिक्षण-कौशलों पर आधारित आदर्श पाठों को वीडियो-टेप अथवा टेपरिवर्डिर के माधयम से प्रशिक्षणार्थियों को ये पाठ दिखाए या सुनाए जाते हैं जिसके फलस्वरूप विशिष्ट कौशल के सम्बन्ध में उन्हें पूर्ण व गहन जानकारी प्राप्त हो जाती है। पर अभी भी अनेक शोध-कार्य चल रहे हैं।
7. अनुसंधान का साधन (Resource of Research): micro teaching का प्रारम्भ अनुसंधान की परिस्थिति में हुआ। तब से इसका प्रयोग शिक्षण-कला में होता आ रहा है। इसके विविध उपयोग एवं इसकी विभिन्न विधाओं (Devices) पर विश्व के अनेक स्थानों
8. निरीक्षण/पर्यवेक्षण प्रणाली को नया स्वरूप (New Status to Supervision) : सूक्ष्म-शिक्षण में कम समय का सम्पूर्ण पाठ देखकर एक ही कौशल पर ध्यान केन्द्रित कर पर्यवेक्षक सुझाव देता है जिसे हृदयंगम कर छात्राध्यापक शीघ्र ही सुधार कर पुन:पाठ पढ़ाने की स्थिति में आ जाता है। इस प्रकार निरीक्षण की नवीन प्रणाली में पर्यवेक्षण वस्तुनिष्ठ (Objective) होता है। सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा
सूक्ष्म-शिक्षण के प्रयोग हेतु सावधानियाँ
(Precautions in micro teaching Practice)
1. किसी विशिष्ट शिक्षण-कौशल पर आधारित पाठ्यवस्तु/विषय-वस्तु (प्रकरण) का शिक्षण समय अधिकतम 10 मिनट ही लेना चाहिए।
2. शिक्षण-कौशल के अभ्यास हेतु कक्षा का आकार छोटा (अधिकतम 10 छात्र) ही रखा जाना चाहिए।
3. शिक्षण करते समय सम्बन्धित शिक्षण-कौशल के घटकों को ही आधार बनाया जाए।
4. शिक्षण के बाद पुनः शिक्षण एक बार में शिक्षण-कौशल की दक्षता प्राप्त करने का यथा- सम्भव प्रयत्न करना चाहिए।
5. पर्यवेक्षक द्वारा शिक्षण-कौशल के निरीक्षण-प्रपत्र (मूल्यांकन) में घटकों का अंकन सही शुद्धता एवं सूक्ष्मता के साथ करना चाहिए। शिक्षण-कौशलों के घटक/तत्व अच्छी तरह स्मरण रहने चाहिए।
6. मूल्यांकन में व्यक्तिनिष्ठा (Subjectivity) का स्थान नहीं होना चाहिए।
7. सूक्ष्म-शिक्षण के अन्तर्गत शिक्षण-कौशल का अभ्यास किसी प्रशिक्षित प्रशिक्षक (Instructor) की उपस्थिति में ही किया जाए।8. मूल्यांकन/निरीक्षण-प्रपत्र पर प्रशिक्षणार्थी के हस्ताक्षर करवाए जाएं ताकि वह अपने शिक्षण सम्बन्धी स्तर से अवगत हो सके।
9. शिक्षण-कौशल के अभ्यास सम्बन्धी अभिलेख (Records) संधारित किया जाए।
10. सेवारत शिक्षक या सेवापूर्व प्रशिक्षणार्थी को micro teaching के अन्तर्गत छ: या सात में उनका शिक्षण प्रभावशाली बन सके।
20 साइंस लेसन प्लान बुक देखें micro teaching Cycle micro teaching Cyclemicro teaching Cycle
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